Sunday, December 6, 2009

द्वादश ज्योतिर्लिंग

प्रश्न : द्वादश ज्योतिर्लिंग कौन से हैं ? कृपया भौगोलिक जानकारी अवश्य दें ?
उत्तर: शिव पुराण के कोटिरूद्र संहिता के अंतर्गत प्रथम अद्ध्याय के २१ वें
श्लोक से २४ वें श्लोक में द्वादश ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया गया है :-
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनं/ उज्जयिन्यां महाकालमोंकारे परमेश्वरं//
केदारं हिम्वात्प्रिष्ठे डा किन्याम भीमशंकरम / वाराणास्याम च विश्वेशं त्र्ययम्बकम गौतमीतटे//
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने / सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं तू शिवालये//
द्वादशैतानि नामानी प्रातः उत्थाय यः पठेत / सर्व पापैर्विनिर्मुक्तः सर्व सिद्धिफलम लभेत//
१) सोमनाथ:- गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित वेरावल स्टेशन के पास यह प्रभास तीर्थ
के रूप में भी विख्यात है/
२) मल्लिकार्जुन :- आंद्रप्रदेश के कृष्णा तट पर श्री शैलम पर्वत पर स्थापित है /
यह चेन्नई प्रान्त के कृष्णा जिले में स्थित है और इसे दक्षिण का कैलाश
भी कहते हैं/
३) महाकालेश्वर :- मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है/
४) ओम्कारेश्वर:- नर्मदा नदी की दो धारायों के मध्य इस ज्योतिर्लिंग का स्थान ॐ
के आकार में है/ यह भी मध्य प्रदेश में उज्जैन से खंडवा के मार्ग पर
स्थित है/
५) केदारनाथ:- बद्रिकाश्रम से थोड़ी दूर पर हिमवत पार्श्व में केदार शिखर
पर मंदाकिनी नदी के तट पर यह शिवलिंग उत्तराखंड का सबसे
प्रसिद्ध तीर्थ है/
६) भीमशंकर:- मुंबई से पूर्व तथा पुणे से उत्तर में भीमा नदी के उद्गम स्थान
पर सह्याद्री के "डाकिनी" शिखर पर भीमशंकर प्रसिद्द ज्योतिर्लिंग है /
७) विश्वेश्वर :- काशी विश्वनाथ के नाम से संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध यह उत्तर-प्रदेश
के वाराणसी में स्थित है/
८) त्र्यम्बकेश्वर :- नासिक से लगभग तीस किलोमीटर दूर गोदावरी के उद्भव स्थल ब्रह्मगिरी में" त्र्यम्बकेश्वर " ज्योतिर्लिंग है/
९) वैद्यनाथ :- यह लंकाधिपति रावण द्वारा पूजित है /
बिहार में स्थित "जसीडिह" स्टेशन के पास इस ज्योतिर्लिंग पर लाखों कांवड़ चड़ते हैं/
१०) नागेश्वर :- द्वारिका पुरी के पास दारुक वन में स्थापित ज्योतिर्लिंग को नागेश्वर
कहते हैं/ स्व० गुलशन कुमार ने इस मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण कराया था/
११) रामेश्वर:- यह तमिलनाडु के पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित है/ यहीं पर श्री राम
ने सेतु बनवाया था , इसलिए इसे सेतुबंध तीर्थ भी कहते हैं/
१२) घुश्मेश्वर:- महाराष्ट्र में दौलताबाद से ११ कि०मी० दूर औरन्गावाद के नज़दीक
एलोरा की गुफायों के निकट स्थित है/ इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई
होल्कर ने कराया था/

Saturday, December 5, 2009

पांच पाप क्या हैं ?

प्र ० पांच पाप क्या हैं ? उनसे मुक्ति के उपाय भी बताने की कृपा करें ?ब्र० द्विजेन्द्र मिश्र ,हरिद्वार /
उत् ० पांच पाप निम्न लिखित हैं :-
पंचसूना गृहस्थस्य चुल्ली पेशंणु पस्करा :
कण्डनी उद्कुम्भ्श्च बद्धयते यास्तु बाह्यं //
तासां क्रमेण सर्वासां निश्क्रित्यार्थम महर्षिभिः
पञ्च कृत्वः महा यज्ञः प्रत्यहम गृहमेधिनाम //
अध्यापनं ब्रम्ह यज्ञः पित्री याग्यस्तु तर्पणं ,
होमो देवो बलिर्भूतो न्रियग्योअतिथि पूजनं //

गृहस्थ के लिए ही नहीं अपितु सभी के लिए ये ऊपर कहे ५ पाप लग ही जाते हैं/
१) रसोई (पाकशाला) में भोजन बनाने और उसकी लिपाई पुताई सफाई आदि
करने में चीटियाँ एवं अन्य अल्प प्राण जीवों की हत्या हो ही जाती है /
२) चक्की में गेंहूँ , मिक्स़र या ग्राइंडर में दाना , दालें ,मसाले अदि पीसने
के दौरान भी जीव हानि होती है /
३) घर की साफ़ सफाई झाड़ू -पौंचा (उस्टिंग) करने से भी जीव हानि होती है/
4) लकड़ी या उपले (गौसे) गोमय द्वारा निर्मित इंधन में भी कीट घर बनाकर
रहते हैं/ जो हमारे द्वारा रसोई पकाने हेतु चूल्हे या भट्टी में जलने से उनकी भी
जीवन हानि होती है/
५) पेय एवं अन्य उपयोगी जल संग्रहण स्थल पर भी चीटियाँ अंडे देती हैं,और
रहती हैं जो जलाहरण काल में दब कर मर जाती हैं/
इन ५ प्रकार के पापों को हम स्वयं के जीवनयापन सुख-सुविधार्थ
जाने अनजाने में करते रहते हैं/
अतः इन ज्ञाताज्ञात ५ पापों से मुक्ति हेतु ऋषियों ने ५ महायज्ञों का
विधान बतलाया है, जिनसे हम उपरोक्त ५ पापों से मुक्त रह सकते हैं/
१) विद्या दान द्वारा
२) देवर्षि, पित्र, एवं मनुष्य तर्पण श्राद्धादी करने के द्वारा
३) हवं-यज्ञादि (दैनिक अग्निहोत्र ) द्वारा/
४) बलि वैश्वदेव (गो ग्रास,श्वान, पिपीलिका,काक,अन्य मानव( दरिद्र नारायण,भिक्षुक,साधू,ब्राह्मण
एवं अतिथि को भोजन करने के द्वारा)
५) अतिथि सत्कार द्वारा/

Sunday, October 11, 2009

सर्व धर्म समन्वित राष्ट्र ही असली भारत का स्वरुप :चंद्र्सागर

सर्व धर्म समन्वित राष्ट्र ही असली भारत का स्वरुप :
भारत का सार्वभौमिक समभाव स्वरुप ही भारत का असली स्वरुप है / भारत के महान गणराज्य को
धर्म निरपेक्ष राष्ट्र कहना अनुचित होगा, अपितु भारत को सर्व धर्म समन्वित राष्ट्र कहना अधिक
सार्थक होगा / किसी एक वस्तु का निरपेक्ष दुसरे वस्तु का सापेक्ष होता है /
जैसे यदि कहा जाये अमुक व्यक्ति धार्मिक नहीं है तो इसका दो अर्थ हो सकता है : १) या तो वह
अधार्मिक है अथवा २) भले ही वह धार्मिक नहीं है किन्तु अन्य क्षेत्र के सेवा भावः के कारन वह
पूजनीय हो सकता है /
यदि वह धर्म के निरपेक्ष होगा तो अधर्म का सापेक्ष भी हो सकता है / तो क्या अधर्म के
सहारे कोई राष्ट्र अपनी प्रजा का कल्याण कर सकता है ? कदापि नहीं / इसलिए भारत को
धर्म निरपेक्ष न कहकर यदि सर्व धर्म समन्वित राष्ट्र कहा जाये तो अधिक सार्थक हो सकता
है / यहाँ सभी धर्म का समान आदर है / भारत का कोई भी नागरिक धर्म से निरपेक्ष नहीं
रह सकता / यदि निरपेक्ष रहता तो हमारे माननीय प्रधानमंत्री कभी मंदिर, कभी मस्जिद ,
या कभी गुरूद्वारे में जाकर चादर नहीं चडाते / वे स्वयं पगड़ी धारण करके हमें यह सन्देश
देते हैं की मै किसी विशेष धर्म के सापेक्ष हूँ , निरपेक्ष नहीं / कोई भी व्यक्ति धर्म से निरपेक्ष
रह ही नहीं सकता / अपनी धुरी पर पृथ्वी का घूमना उसका अपना धर्म है , जिसके फलस्वरूप
'रात-दिन ' का होना निहित रहता है / यदि पृथ्वी अपने धर्म से निरपेक्ष हो जाये तो क्या
'रात और दिन ' का होना संभव हो पायेगा ? जल अपना धर्म प्यास बुझाना छोड़ सकता है क्या ?
अग्नि अपना धर्म जलाना छोड़ सकती है क्या ?जब प्रकृति भी धर्म के सापेक्ष है तो हम
धर्म से निरपेक्ष कैसे रह सकते हैं ?
आज भी अदालतों में लोग अपनी- अपनी धर्म ग्रंथों पर हाथ रखकर ही सपथ लेते हैं, तो फिर धर्म से
निरपेक्ष कैसा ? इसलिए गर्व से कहो हमारा भारत सर्व धर्म समन्वित राष्ट्र है /सभी धर्मों का
आदर करने वाला एक मात्र महान राष्ट्र / पं चंद्र्सागर , हरिद्वार

Wednesday, September 16, 2009

गाँव में क्रांति :चंद्रसागर

गाँव में क्रांति :
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हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के सुदूर गाँव मंडवाच (गाताधार) जो की नाहन से ९७ किमी
दूर 'संगडाह' तहसील और 'सांगना' डाकघर के अर्न्तगत पड़ता है/
यहाँ के वर्तमान प्रधान हैं श्री सुखराम शर्मा / २० किमी की कच्ची सड़क पार करके
ब्राहमणों के इस गाँव में जब मै पहुंचा तो चारों ओर का हिमाच्छादित वातावरण
देखकर मै गदगद हो उठा / औपचारिक वार्ता के पश्चात् पता चला यहाँ अभी भी घर -घर
में बकरे की बलि दी जाती है और छुआ-छूत अपने चरम पर है /यहाँ तक की पित्र पक्ष्य
में कोई ब्राह्मण किसी के यहाँ भोजन करना भी पसंद नहीं करता /चार भाईओं में एक
पत्नी -प्रथा अभी भी इस गाँव में प्रचलित है /अर्थात चार भाइयों में कोई एक विवाह करेगा
और शेष तीन भी उसे अपनी पत्नी की तरह व्यवहार करेगा /इक्कीसवीं सदीं में इस
प्रचलन से मै हतप्रभ था /
मैंने सोचा , क्या मै यहाँ कोई क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता हूँ ?
घनघोर वर्षा में मै आद्ध्यात्म के प्रति लोगों का रुझान देखकर आश्चर्य चकित था /
मैंने सोचा भागवत कथा में कोई नहीं आएगा किन्तु पूरा पंडाल खचाखच
भरा था / लोग भीगते हुए कथा श्रवण कर रहे थे / कथा के चौथे दिन अर्थात १०-सितम्बर-२००९
को कथा में गाँव की इन सामाजिक बुराईयों को को मिटाने का मुद्दा उठाया /
उसी दिन रात्री में गाँव के प्रधान ने एक सभा का आयोजन किया और किसी घर
में बकरा न काटने का संकल्प लिया गया/ घर-घर में शौचालय बनाने का संकल्प
लिया गया / आपस में ऊँच-नीच का भेद-भावः मिटाते हुए छुया-छूत मिटाने का तत्काल
निर्णय लिया गया और वह भी सर्व-सम्मति से / कन्यायों
को पाठशाला भेजने का निर्णय भी सर्व- सम्मति से लिया गया और
इसके लिए मै उस प्रधान जी का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ /
एक बकरे की हत्या से लगभग प्रत्येक घर में १० हज़ार रुपये का खर्च होता था /
एक सीजन में लगभग ५ बकरे की बली दी जाती थी /इस हिसाब से अब प्रत्येक
परिवार लगभग पचास हज़ार रुपये बचा सकता है /एक नयी क्रांति का सूत्रपात
किया गया / पचास हज़ार रुपये का बचत किया गया तो पांच वर्ष
में ढाई लाख का मूलधन और ब्याज मिलाकर करीब चार लाख का बचत
कर सकते हैं / इतनी राशि उस गाँव के लिए दो कन्याओं के विवाह के लिए
पर्याप्त है /
यहाँ बहुतायत में आलू- मटर और अखरोट की खेती की जाती है/ पहाडी आलू
का मैदानी क्षेत्रों में बिशेष मांग होता है /और इसका यहाँ के किसानों को अच्छा
मूल्य भी प्राप्त होता है /अस्तु ! ऐसा हर पहाडी गाँव में हो जाए तो विकास की
एक नयी गाथा लिख सकते हैं /
भागवत के अंतिम दिन नाहन से पधारे प्रख्यात योगाचार्य पं श्री देवी सहाय शास्त्री
ने अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण सभा का सम्मलेन किया जिसमे गाँव में योग भवन बनाने
का निर्णय लिया गया , जिनके निर्देश में ग्राम-वासिओं को योग सिखाकर पूर्ण
स्वस्थ बनाने का संकल्प लिया गया / इस पवित्र कार्य के लिए एक ग्रामीण
भक्त पं कंठी राम ने एक बीघा जमीन दान देने का एलान कर दिया /
मै समस्त ग्राम वासियों को साधुवाद देता हूँ/ पं चंद्रसागर

Saturday, September 5, 2009

"सांख्य" शास्त्र की प्रासंगिकता: पं चंद्रसागर

श्रीमद भागवत महापुराण में भगवान कपिल अपनी माता देवहुति को सांख्य -शास्त्र का
उपदेश करते हैं / वस्तुतः एकादश स्कंध में भी भगवान श्रीकृष्ण , उद्धव को
सांख्य- योग का उपदेश करते हैं/ एक ही शास्त्र का अलग- अलग स्थानों पर स्वयं
भगवान के मुख से प्रतिपादन किया गया है / निश्चित रूप से इसकी अपार महिमा है,
तभी तो भगवान दो बार सांख्य -शास्त्र का निरूपण करते हैं /
किन्तु सांख्य -योग है क्या , भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - सांख्य माने तत्त्वों की गणना /
आत्मा वस्तुतः - तत्त्वतः परमात्मा ही है / जैसे घड़ा तत्त्वतः मिट्टी है , मृत्रिका है ,
उसमे घड़े की आकृति गढ़ी गयी है और भिन्न -भिन्न नाम उसके रखे हुए हैं , वैसे
ही आकृति में उपादान रहता है और नाम बाहर से कल्पित किया जाता है /
देखिये , आप अपने को घड़ा समझते हैं या मिट्टी ?
यदि आप अपने को घड़ा समझते हैं तो आपका जन्म हुआ है /
उसमे कहीं काला दाग भी हो सकता है , वह टूट - फूट भी सकता है
और उसमे मदिरा या गंगा - जल भी भरा जा सकता है /
किन्तु यदि आप अपने को घड़ा-बुद्धि या देह बुद्धि न करके मृत्तिका -
बुद्धि कर लें की मै घड़ा नहीं मिट्टी हूँ , तो न मिट्टी का जल हुआ ,
न मिट्टी में शराब या गंगा -जल रक्खा गया ,न पाप हुआ न
पुण्य हुआ , न राग हुआ न द्वेष हुआ , न सुख हुआ न दुःख हुआ /
जब घड़ा था तब भी माटी और जब फूट गया तब भी माटी ,
माटी के सिवाय और कुछ नहीं /
कपिल भगवान कहते हैं ;-
चेतः खल्वस्य बंधाय मुक्तये चात्मनो मतम् (भाग० ३/२५/१५ )
आत्मा के स्वरुप में न बंधन है , न मुक्ति है /
अपने मन में बंधन की जो कल्पना की गयी है वह अविद्यक है /
अपने स्वरुप को न जानने के कारण ही अपने बंधन की कल्पना होती है /
जब तत्त्व का सम्यक विचार हो जाता है तो मुक्ति तो अपने- आप ही
प्राप्त है /
गुणेषु सक्तं बंधाय रतं वा पुंसि मुक्तये (भाग0 ३/२५१५)
आइये तत्वों की गणना करते हैं / एक होता है 'कार्य ' और दूसरा होता है 'कारण'
इन दोनों के मिश्रण को कहते है 'कार्य- कारण '/पंचभूत 'कार्य' के
अर्न्तगत आते है और प्रकृति उसका 'कारण' है /

दृश्य जगत में जितने भी पशु- पक्षी , वृक्षादी व् मनुष्य दिखाई पड़ते हैं
वे सब के सब पंचभूत के कार्य नहीं है अपितु वे स्वयं पंचभूत रूप ही हैं/
पृथ्वी ,वायु, जल, अग्नि, आकाश ये सभी अंतिम कार्य हैं / इनमे जितनी भी
शक्ल - सूरतें बनती हैं वे सब की सब कल्पित हैं/
क्या किसी शारीर से आकाश अलग होता है? शारीर में सांस एक है ,
आयम एक है, जल एक है और पृथ्वी एक है / इसलिए शरीरों के
अलगाव से तत्त्व में किसी प्रकार का अलगाव नहीं होता /
इसिजिये पंचभूत को 'कार्य' बोलते हैं और प्रकृति को उसका कोई कारण
न होने से 'कारण' बोलते हैं/
अब इन दोनों के बीच में जो पञ्च तन्मात्राएँ (शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध) ,
अंहकार और महत्तत्त्व है , ये अपने कारण की दृष्टि से कर्म और कार्य की
दृष्टि से कारण अर्थात -"कार्य-कारण" कहलाते हैं /
इन तीनों तत्त्वों से परे चौथी वस्तु है असंग - साक्षी, शाश्वत- सनातन, चेतन -
आत्मा , जिनसे ये प्रकाशित होते हैं/
इस प्रकार सांख्य की प्रक्रिया से यदि विचार किया जाये की किस प्रकार
प्रकृति से श्रृष्टि उत्पन्न होती है और श्रृष्टि कैसे प्रकृति में मिल जाती है ,
तो संसार की आसक्ति छूट जाती है और सबमे एक ही भगवत तत्त्व नारायण
का दर्शन होने लगता है /तब कैसा राग और कैसा द्वेष , कौन अपना और
कौन पराया / इस प्रकार के ध्यान से संसार की आसक्ति सर्वथा मिट
जाती है / इसी को कहते हैं 'अन्वय-व्यतिरेक' से चिंतन /सबमे प्रकृति
का अन्वय है ,सभी वस्तुयों के बिना भी प्रकृति रहती है और उसमे
सब के सब लीं हो जाते हैं /परन्तु प्रकृति का लोप साधारण दृष्टि
से नहीं होता / इसके लिए योगाभ्यास करना चाहिए / यदि योगाभ्यास
संभव न हो तब भगवान की भक्ति करनी चाहिए /
भक्ति के लिए कपिलदेवजी ने भगवान के स्वरुप का ध्यान करते हुए
कहा :-
संचिन्तयेद भगवतश्चरनार विंदं
वज्रांकुश ध्वजसरोरुह लांछनाढ्यम (भाग०३/२८/२१)
चरणारविन्द से लेकर मुखारविंद पर्यंत और मुखारविंद से
चरणारविन्द पर्यंत भगवान की आकृति का , उनके श्रीविग्रह का
चिंतन करते रहना चाहिए / मन को दौड़ाना चाहिए भगवान के शारीर में /
मन का स्वभाव है भटकना / तो फिर इस मन को बाहर न भटकाकर
धारणा योग के द्वारा भगवान की आकृति में ले आना चाहिए /
ऐसा ध्यान करते-करते मन अपनी मनोरुपता छोड़ देता है और
स्वतः भगवान के विचार में लीन हो जाता है /
मुक्ताश्रयम यर्हि निर्विषयं विरक्तं
निर्वाण म्रिचछति मनः सहसा यथार्चिः (भाग० ३/२८/३५)
जब इस प्रकार मन समस्त भौतिक कल्मष से रहित और विषयों
से विरक्त हो जाता है तो यह दीपक की लौ के समान स्थिर हो जाता है/
जहाँ एक परमात्मा के सिवाय और कुछ नहीं होता /
ब्रम्ह्सूत्र में भी इसका प्रतिपादन किया गया है -
"पटवच्च" (२/१/१९)
वस्त्र बनने से पहले वह सूत्र में अप्रकट रहता है किन्तु बुनने के बाद
वह बस्त्र के रूप में प्रकट हो जाता है / दोनों ही स्थिति में वस्त्र
अपने कारण में विद्यमान है और उससे अभिन्न भी है /
इसी प्रकार यह जगत् उत्पत्ति से पहले भी ब्रम्ह में स्थित है
और उत्पन्न होने के बाद भी उससे पृथक नहीं होता /
सिया राममय सब जग जानी /
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी //

Monday, August 31, 2009

तुलसी शालिग्राम विवाह महिमा :पं चंद्रसागर

तुलसी शालिग्राम विवाह महिमा :पं चंद्रसागर
संपूर्ण विश्वों में जिस देवी की कोई तुलना नहीं है, अतः तुलसी नाम से विख्यात विष्णुप्रिया
अपनी अनंत महिमा के लिए शाश्त्रों में पूजित हैं कार्तिक पूर्णिमा तिथि को तुलसी का
मंगलमय प्राकट्य हुआ था, इसी दिन भगवान श्री हरि ने उनकी पूजा सम्पन्न की थी
श्रीमद देवी भागवत के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी
पत्र अर्पण करता है , वह दस हज़ार गायों के दान का फल निश्चित रूप से प्राप्त करता
है (देवी भा ९-२५-३६)
तुलसी के प्रादुर्भाव का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है राजा धर्मध्वज की पत्नी माधवी के
गर्भ से एक अतुलनीय अनुपम सौंदर्य वाली कन्या का जन्म हुआ जिसे विद्वान लोग
तुलसी के नाम से पुकारते हैं तुलसी ने बदरीवन में दिव्या एक लाख वर्ष तक तप
किया और ब्रह्मा जी से निवेदन किया, हे तात ! में पूर्व जन्म में गोलोक में श्री कृष्ण
की सहचरी तुलसी नाम की गोपी थी एक दिन रासमंडल में रास की अधिष्ठात्री देवी
श्री राधा ने मुझे श्री कृष्ण के साथ विहार करते हुए देखकर शाप दे दिया -" तुम मनुष्य
योनी प्राप्त करो "
तब गोविन्द ने मुझसे कहा - भारत वर्ष में जन्म लेकर तपस्या करके तुम ब्रम्हा जी के
वरदान से मेरे अंश स्वरुप चतुर्भुज विष्णु को पतिरूप में प्राप्त करोगी अतः आप मुझे
श्री हरि को पति रूप में प्राप्त करने का वर दीजिये
ब्रह्माजी ने कहा -देवी उसी गोलोक में एक सुदामा नाम का गोप था जो तुम पर आसक्त था
तुम्हारे प्रति कामासक्त भावना के कारन राधा के शाप से वह सुदामा गोप इस समय समुद्र
में शंखचूड नामक दैत्य के रूप में विख्यात है हे देवी ! अब इस जन्म में तुम उसी सुदामा
गोप की पत्नी बनोगी और बाद में शान्तस्वरूप भगवान नारायण का वरण करोगी
दैव योग से उन्ही भगवन नारायण की शाप से तुम अपनी कला से विश्व को पवित्र करने
वाली पावन वृक्ष रूप में प्रतिष्ठित होयोगी तुम्हारे विना की गयी सभी देवतायों की
पूजा व्यर्थ समझी जायेगी वृन्दाबन में तुम "वृन्दावनी " नाम से विख्यात रहोगी
तदन्तर दानव शंखचूड ने गान्धर्व -विवाह के अनुसार उस तुलसी को पत्नी रूप में
ग्रहण कर लिया शंखचूड के आतंक से भयभीत देवगन भगवान विष्णु के पास गए

भगवान विष्णु ने कहा - " जिस समय उसकी पत्नी का सतित्व नष्ट होगा ,
उसी समय उसकी मृत्यु होगी भगवान शंकर स्वयं मेरे त्रिशूल से उसका वध करेंगे "
तदन्तर देवताओं का कार्य सिद्ध्य करने में सदा तत्पर रहने वाले भगवान श्री हरी वैष्णवी माया के द्वारा शंखचूड का रूप धारण कर उसकी पत्नी का पातिव्रत धर्म नष्ट करके शंखचूड को मारने की इच्छा से तुलसी के घर चले गए हास – परिहास
करते हुए जब तुलसी के साथ रमण करने लगे तो तुलसी ने अपने मन में विचार
करके सब कुछ जान लिया और कहा - तुमने छल पूर्वक मेरा सतीत्व नष्ट किया ,
अतः मै तुम्हे शाप देती हूँ -
आपने छल पूर्वक मेरा धर्म नष्ट करके मेरे स्वामी को मार डाला आप पाषाण -ह्रदय वाले
हैं तथा दयाहीन हो गए हैं अतः हे देव ! आप इसी समय पृथ्वी लोक में पाषाण रूप
हो जाएँ
इस पर श्री हरि ने कहा - हे देवी ! तुमने भी मुझे पति रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर
तप किया है , अतः इस शरीर का त्याग करके दिव्य देह धारण करके मेरे साथ मेरे
ह्रदय में लक्ष्मी में रूप में स्थापित हो जाओ तुम्हारा यह शरीर गण्डकी नदी के रूप
में प्रसिद्ध होगा
तुमारा केश समूह पुण्य वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित होगा तुम्हारे केश से उत्पन्न
वह वृक्ष " तुलसी " के नाम से प्रसिद्ध होगा ( देवी भाग ९-२४-३२)
मै भी तुम्हारे शाप से पाषाण बनकर भारत वर्ष में गण्डकी नदी के तट के समीप निवास
करूँगा वहां रहने वाले करोंडों कीट अपने तीक्ष्ण दान्तरुपी श्रेष्ठ आयुधों से काट - काटकर
उस शिला के गड्ढे में मेरे चक्र का चिह्न बनायेंगे
जिसमे एक द्वार का चिह्न होगा, चार चक्र होंगे और जो वनमाला से विभूषित होगा तुलसी
वह नविन के मेघ के समान वर्ण वाला पाषण "लक्ष्मी- नारायण " नाम से प्रसिद्द
होगा
जो फल दस हज़ार गायों का दान करने से होता है , वही फल कार्तिक मास में
तुलसी के पत्र के दान से प्राप्त हो जाता है (देवी भाग ९-२४-४१)
जो मनुष्य तुलसी -काष्ठ से निर्मित माला को धारण करता है, पद-पद पर
अश्वमेध यज्ञ का फल निश्चय ही प्राप्त करता है(देवी भाग९-२४-४५)
तुलसी धारण करने से सम्बंधित कुछ विधि -निषेध का पालन भी
अत्यावश्यक है शास्त्रानुसार -पूर्णिमा, अमावश्या , द्वादशी , सूर्य संक्रांति, रात्रि
दोनों संध्याएँ , अशौच ,तथा अपवित्र समयों में, रात के कपड़े पहने
हुए तथा शरीर में तेल लगाकर जो लोग तुलसी के पत्र तोड़ते हैं ,
वे साक्षात् श्री हरि का मस्तक ही काटते हैं (देवी भाग ९-२४-५०)\
शालग्राम शिला का एक नाम "दामोदर" भी है जो पाषाण गोलाकार तथा दो
चक्रों से सुशोभित हैं उसे "दामोदर" स्वरुप जानना चाहिए (देवी भाग ९-२४-६३)
इसलिए कार्तिक मास में दामोदर परिक्रमा का विशेष माहात्म्य है कार्तिक मास
में परिक्रमा करते हुए जो दामोदर भगवान को तुलसी पत्र अर्पण करता है , वह
समस्त तीर्थों का फल प्राप्त कर लेता है
चरों वेदों के पढने तथा तपस्या करने से जो पुण्य प्राप्त होता है , वह पुण्य शालग्राम
के दामोदर स्वरुप पूजन से प्राप्त हो जाता है
तुलसी के आठ पवित्र नामों का स्मरण करने से समस्त पाप क्षीण हो जाते हैं
ये नाम इस प्रकार है - वृंदा, वृन्दबानी, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा , नंदनी ,
तुलसी तथा कृष्णजीवनी
तुलसी -शालग्राम विवाह उत्सव मानाने से स्त्रियों को कभी वैधव्य का सामना नहीं
करना पड़ता , यह जीवन के समस्त अमंगलों को समाप्त करके अभीष्ट की
प्राप्ति करा देता है और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करके हरि की शरणागति
प्रदान करा देता है
तुलसी जी की अनंत महिमा का वर्णन कौन कर सकता है
तुलसी के औषधीय गुणों का वर्णन तो आयुर्वेद में विस्तार से किया गया
है सर्दी हो ,जुकाम हो अथवा खांसी हो , तुलसी का रस अमृत -तुल्य
होता है
लगभग २० वर्ष पहले भोपाल में गैस रिसाव काण्ड हुआ था जिसमे हजारों
लोग मारे गए थे एक अमेरिकी रिसर्च टीम ने शोध में पाया - जिन घरों के
आँगन में तुलसी का कुंडा था, उन घरों में किसी की मृत्यु नहीं हुयी थी
तुलसी से उत्सर्जित ऑक्सिजन में तो छूत के रोगाणु व कीटाणु तत्काल नष्ट
हो जाते हैं और संपूर्ण वातावरण पवित्रमय हो जाता है चंद्रसागर , २९-०८-०९


Tuesday, May 19, 2009

दंभ लोभ और अशिष्टता ही 'भाजपा ' के पतन का कारण :

१ )लोकतंत्र में लोकमत ही सर्वोपरि होता है .ऐसे में चुनाव से पूर्व ही अपने
को पि ऍम इन वेटिंग कहना अति दंभ का परिचायक है.
2) सन् 2004 में समय से छह माह पूर्व ही चुनाव कराकर भाजपा
ने अति लोभी और सत्ता लोलुप होने का परिचय दे दिया था .
उस समय विधान सभा के चुनाव में तीन प्रदेशों (राजस्थान , मध्य प्रदेश , गुजरात )
में बहुमत पाकर भाजपा अति लालच में डूब गया और
अपना छह माह का शासन भी हाथ से गवां बैठा ,
3) इस चुनाव में तो मानों भाजपा के बड़े नेताओं ने शपथ ले लिया हो की हम अशिष्ट
और अभद्र भाषा का ही प्रयोग करेंगे : जबकि कांग्रेस का कोई भी बड़े नेता ने पलट कर जबाब भी नहीं दिया . कुछ उदाहरण देखिये :- a ) अडवानी कहते हैं - ' प्रधान मंत्री कमजोर हैं ......'
b) नरेंद्र मोदी कहते हैं ;- प्रियंका बुढ़िया है , फिर कहा गुड़िया है '
क) वरुण गाँधी ने तो सारी हदें पार कर दी . हिंदुत्व पर किस भारतवासी को को गर्व
नहीं होता, पर इसके लिए हाथ काटने की धमकी देने की क्या आवश्यकता है ?
4) श्री राम का नाम तो अब भाजपा के मुख से अपशब्द जैसा लगता है ,
भबिष्य में भाजपा को राम , हिंदुत्व और धर्म की राजनीति छोड़कर केवल
विकास , महंगाई और भ्रष्टाचार उन्मूलन जैसे मुद्दों पर राजनीति करनी चाहिए ,
5) शास्त्रों में एक कुशल राजा का लक्षण बताते हुए कहा गया है ;- अ) जिसके राज्य
में कोई भूखा और निर्वस्त्र न रहे . ब) किसी निर्धन के साथ भी अन्याय न हो .
स) कोई प्रजा निराश्रित न रहे अर्थात् सबके सिर पर छत हो .
6) अब हम सब भारत वासी इस नई सरकार से पूछ रहे हैं ;- क्या अब भारत का गरीब
मिट्टी का तेल, गैस , गेहूं , चावल , चीनी सरसों का तेल व घी खरीद पायेगा ?
ये मूलभूत प्राण रक्षक वस्तुयें यदि सस्ती हो जाए तो सबकी दुआएं मिलेंगी .
७) भाजपा पराजय की आत्म -मंथन करें और कांग्रेस विनम्रता
के साथ विजय मुकुट की रक्षा करे .
यही प्रभु से प्रार्थना है . chandrasagar

Wednesday, March 11, 2009

"होली का राष्ट्रीय चिंतन "

भक्ति के रंग में सराबोर होकर भक्ति के बाधक तत्वों को जलाकर नष्ट कर देना ही
होलिका दहन है.
संकट में अथवा किसी भी प्रतिकूल स्थिति में प्रहलाद से "श्री कृष्णः शरणम
ममः " का पाठ और दृढ हो जाता है
एक बार श्रद्धा व विश्वास का आश्रय लेकर यदि नारायण की शरणागति
मिल जाये तो क्रोध व मोह रूपी होलिका हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती .
परमात्मा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए शास्त्रानुकूल आचरण
अति आवश्यक है.
प्रातः ब्रम्ह्मूहुर्त में उठना ,सूर्य को अर्घ्य देना , माता -पिता का
चरण स्पर्श करना , संध्या वन्धन करना ये सब हमें प्रभु के निकट
ले जाकर अति आनंद की अनुभूति कराता है.
आनंद प्राप्त करना ही मानव जीवन का परम लक्ष्य है .
आनंदहीन व्यक्ति का जीवन नीरस होता है और वह संपन्न होकर भी
दरिद्र कहलाता है .
शास्त्रानुकूल आचरण करने वाले का लक्ष्मी सदैव आदर करती है.
प्रह्लाद को लक्ष्मी ने स्वयं अपने हाथों से भोजन कराया .
जब हिरण्य कशिपू ने प्रहलाद को बंदी बनाया दिया था .
अब आप ही बताइए जब आप पर लक्ष्मी की कृपा होगी तो आप
संपन्न होंगे और जब आप संपन्न होंगे तो समाज संपन्न होगा
और जब समाज संपन्न होगा तो क्या देश संपन्न नहीं होगा . ?

Tuesday, February 10, 2009

दोनों मुस्लिम भाइयों (युसूफ व इरफान ) की जय हो :

दोनों मुस्लिम भाइयों (युसूफ व इरफान ) की जय हो :--------------------------------------------------------------- श्रीलंका को तीन विकेट से मात देने वाले दोनों पठान बंधुओं ने आज सवासौ करोड़ हिंदुस्तानिओं का सर गर्व से ऊँचा कर दिया है जब दोनों पठान बंधू खेल रहे थे तब हम हिंदूओं का दिल भी खुशी से धड़क रहा था तब हम हिंदू - मुस्लिम में भेद-भाव क्यों करते हैं श्रीराम सेना व विश्व हिंदू परिषद् जैसे संगठनों को कट्टर भाषा का त्याग कर प्रेम व सौहार्द की भाषा अपनानी चाहिए
चंद्रसागर

मै कथा क्यों सुनाता हूँ :

मै कथा क्यों सुनाता हूँ :
१) जीवन में आनंद व खुशी कौन नही चाहता
यदि सत्संग व पूजा पाठ से मन को
खुशी मिलती है
तो आपत्ति क्यों
२) लोग शराबबंदी का आन्दोलन चलाते हैं किंतु मानता कोई नही
व्यास -पीठ से एकबार आहवान मात्र से लोग पीना छोड़ देते हैं
क्या इह पर्याप्त नही
३) देश में लूट व बलात्कार की घटनाएं निरंतर बढ रही हैं
सत्संग के द्वारा मनुष्य की दृष्टि व सोच
बदल
जाती है
जब काम दृष्टि
राम - दृष्टि में परिणत हो जाता है
तो वहा
परनारी में भी माँ- बहन का दर्शन करता है
क्या यह बहुत बड़ा उपकार नही

४) जितनी अवधि वह सत्संग में विराजता है
उतनी अवधि तक
वह बीडी -सिगरेट
तम्बाकू
मांस-मदिरा
यहाँ तक कि वह मच्छर मारने से भी
बचता है
व्यक्ति को पाप करने से रोकना क्या पाप है
५) टी
वी. के माध्यम से नग्न- संस्कृति के चलते यदि शास्त्र के माध्यम से
भारतीय - संस्कृति का प्रचार - प्रसार किया जाय तो इसमे ग़लत क्या
शास्त्र- सम्मत आचार-विचार से तो मनुष्य कि आयुष्व कि वृद्धि करके
स्वस्थ जीवन जीने का मंत्र प्रदान करता है.
६) आज वृद्ध माता -पिता उपेक्षित हो रहे हैं
यदि भक्ति का
पाठ पढाकर उन्हें पितृभक्त व देशभक्त बनाया जाए तो क्या यह
सबसे बड़ी राष्ट्रभक्ति नही होगी
७) बलि प्रथा
दहेज़ प्रथा
बाल विवाह आदि कुप्रथाओं को शास्त्रीय माध्यम
से रोकना क्या अपराध है
और यह सब मै भागवत कथा के माध्यम से करता हूँ

और अन्तिम श्वांस तक करता रहूँगा
मेरे इस आन्दोलन का नाम है " अंतर्राष्ट्रीय भगवत्प्रेम प्रचार समिति "
इस आन्दोलन में शामिल होने के लिए संपर्क करें.
शेष भगवत कृपा !
मुझे गर्व है कि मै हरि कथा के माध्यम से राष्ट्र की सेवा कर
रहा हूँ चंद्रसागर

Sunday, February 8, 2009

मूर्खों का कट्टरवाद ही आतंकवाद है :

मूर्खों का कट्टरवाद ही आतंकवाद है :
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आज देश में सर्वत्र "वाद " का प्रभुत्व छाया हुआ है , जैसे - जातिवाद, भाषावाद , पंथवाद, क्षेत्रवाद ,
और सबसे ऊपर है -आतंकवाद
कोई मूर्ख कहता है - महाराष्ट्र मराठिओं का है , बिहार बिहारिओं का है ,
तमिलनाडु तमिलों का है , बंगाल बंगालिओं का है , तो फ़िर बताईये -
हिंदुस्तान किसका है ?
जब आजादी की लड़ाई में हिंदू- मुस्लिम , गुजराती, मराठी, बंगाली,
पंजाबी सभी का सहयोग रहा है , तो फ़िर संपूर्ण भारत पर सबका
समान अधिकार क्यों नही ?
एक शब्द और है - "धार्मिक -कट्टरवाद "
पता नही किस मूर्ख ने इस शब्द को प्रचलित किया
क्यों की व्यक्ति यदि धार्मिक है तो कट्टर नही होगा,
और यदि कट्टर है तो धार्मिक नही होगा
धार्मिक सदैव सहिष्णु और सुहृद होता है , वह कभी कट्टर हो ही नही सकता
कट्टरवाद का ही दूसरा नाम -आतंकवाद है
इसलिए समस्त "वाद" भूलकर केवल मानव सेवा का लक्ष्य मानकर
प्रभु - कृपा से आबाद रहिये मानव का शरीर मिला है इसलिए प्रभु का
धन्यवाद् कीजिये जय श्री कृष्ण ! चंद्रसागर

Sunday, February 1, 2009

मानव जीवन का परम लक्ष्य भगवत्प्रेम की प्राप्ति:

मानव जीवन का परम लक्ष्य भगवत्प्रेम की प्राप्ति: आप अपने बच्चों को पढाते हैं, क्या उन्हें जीवन का लक्ष्य बतलाते हैं? यदि नौकरी करके पेट भरना ही जीवन का लक्ष्य है , तो पेट तो पशु भी भरते हैं मानवीय लक्ष्य्नों जैसे सत्य , इमानदारी , दया व जीव मात्र के प्रति यदि प्रेम भाव नही तो हम पशु समान ही हुए सत्यम का मालिक करोड़पति होकर भी चोर है, मुंबई का आई. पी.एस अधिकारी साजी ड्रग्स के धंधे में लिप्त है क्या ये पशु से भी अधिक नही हैं ?यदि सबके प्रति प्रेम होता तो अपने राष्ट्र से भी प्रेम होता जीव मात्र के प्रति प्रेम ही भगवत प्रेम में परिणत हो जाता है जिनके जीवन में प्रभु शरणागति का टिकेट प्राप्त हो जाता है , उनके जीवन में रोग, शोक, और भय नही होता यदि आप रोग, शोक और भय से मुक्त होना चाहते हैं तो तत्काल प्रभु शरणागति का टिकेट प्राप्त कर लीजिये प्रेम से गाइए :हरे कृष्ण हरे कृष्ण ,कृष्ण- कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम , राम -राम हरे हरे शेष फ़िर .... चंद्रसागर

Saturday, January 31, 2009

रेल यात्रा में सत्संग का आनंद:

आज मै हरिद्वार से मोतिहारी जा रहा हूँ.\ जिस बोगी में मेरा सीट है ,उसमे कुछ लोग ताशखेल रहे हैं और कुछ लोग मेरे साथ सत्संग का लाभ ले रहे हैं.\आश्चर्य की बात है , ताश खेलनेवाले भी मेरे पास आकर बैठ गए\ अंतःकरण में सबको हरि कथा अच्छी लगती है .\ कोई नेता या अभिनेता कितना भी लोकप्रिय हो उसे लगातार दो दिन सुनना कोई पसंद नही करता किंतु हरी कथा या राम कथा लगातार सात दिन सुनना पसंद करते हैं , क्योंकि हरि चर्चा सबको अच्छी लगती है , तो फ़िर ताश के टुकडो में अपना अमूल्य समाया नष्ट क्यों किया जाए अपना बैंक बैलेंस कौन नहीं बढ़ाना चाहता ? तो फ़िर "नाम धन "का बैलेंस क्यों नही बढाते?
"काम करते चलो नाम जपते चलो,हर समय कृष्ण का ध्यान धरते चलो. नाम धन का खजाना बढाते चलो ,कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो "एक मिनट का समय भी बरबाद हुआ तो उसकी पूर्ति नही हो सकती.विचार कीजिये , शेष भगवत कृपा. चन्द्रसागर

Wednesday, January 28, 2009

राम-मन्दिर का राष्ट्रीय चिंतन

प्रातः जब मै गंगाजी का दर्शन करने जाता हूँ तो लोग मुझे "राम- राम" करते हैं. जब कोई अन्तिम यात्रा मै जाता है तो उसके पीछे सब लोग 'राम- नाम सत्य है" कहते हुए चलते हैं./ सबसे आश्चर्य की बात है - भारत का सबसे कम साक्षरता दर रखने वाला प्रदेश बिहार के अति साधनहीन ग्राम् एकवारी (जिला भोजपुर)का निरक्षर किसान भी रामचरित मानस की चौपाइओं से अवगत है / वही राम अपने मन्दिर के लिए अपने ही घर अयोध्या मे मजबूर है क्यों ?क्या त्याग व अहिंषा से राम-मन्दिर का निर्माण सम्भव नही? श्री राम का संपूर्ण जीबन केवल त्याग व अहिंसा पर आधारित है / एक राज्य का त्याग किया, बदले में दो मिला, उन दोनों को भी सुग्रीव और बिभीषण में बाँट दिया / उसी त्याग पुरूष मर्यादा पुरुषोत्तम का मन्दिर त्याग व अहिंसा से सम्भव क्यों नही ? यह अकाट्य सत्य है- इस देश को आजाद कराने के लिए हिंदू व मुसलमान दोनों ने ही बराबर योगदान दिया/ आज भी लोग मिल बांटकर होली-दिवाली और ईद-रमजान साथ मनाते हैं /जब दिलों से एक हैं तो दोनों पक्षों द्वारा त्याग व प्रेम का प्रदर्शन क्यों नही होता?यदि एक मंच पर भारत के सभी धर्माचार्य व मौलवी एकत्रित हों और एक -दुसरे से त्याग का आग्रह करे तो इस रास्ट्रीय समस्या का समाधान हो सकता है.मन्दिर यदि पूजन का स्थान है तो मस्जिद भी इबादत का स्थान है/या तो मन्दिर बने अथवा मस्जिद./यदि राम-जन्म भूमि करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र है तो समस्त मुस्लिम भाइयों को अपने हाथों से त्याग का प्रदर्शन करते हुए मन्दिर बनवाकर देना चाहिए /वहीं दूसरी ओर समस्त हिंदू मिलकर मुस्लिम भाइयों का जो भी आस्था का केन्द्र है वहाँ मन्दिर से भी बड़ा मस्जिद बनवाकर त्याग का परिचय देना चाहिए/अल्लाह व राम दोनों ही घट-घट वासी हैं /मुझे तो मस्जिद में भी राम का दर्शन हो जाता है / तो फ़िर भेदभाव क्यों? हरिद्वार मे हिंदू कांवड़ चडाते हैं किंतु कांवड़ बनाते हैं मुस्लिम भाई /क्या आपसी प्रेम और सौहार्द का परिचय देकर भारत वर्ष को हिंषा -मुक्त राष्ट्र नही बना सकते? हिंसा समस्या है , किंतु समाधान नही/सत्य परेशान है , किंतु पराजित नही/शेष फ़िर कभी .चंद्रसागर.

आप धन चाहते है या मुक्ति

समस्त प्रभु प्रेमियों : जय श्री कृष्ण !अच्छा बताओ लोग क्या चाहते हैं? धन या मुक्ति ? शायद धन, किंतु सच यही है प्रत्येक व्यक्तिमुक्ति चाहता है. क्या रोग मुक्त होना चाहते हो? क्या शोक मुक्त होना चाहते हो? क्या भय मुक्त होना चाहते हो ? जबाब है हाँ . मुक्ति शब्द सबमे कॉमन है. और मुक्ति है गोविन्द की शरणागति में. शेष भगवत कृपा.चंद्रसागर.

ONLY GOD IS OURS.....

Only God is ours because HE was ours in the past, HE is ours at present
and HE will be ours in future. But the worldly things were neither ours,
nor will remain ours and at present also there is continuous separation
from them.
There can’t be our union with the world and there can’t be our disunion
From GOD.
The man’s desire for God-realization never perishes, though he may not
Accept and know it. He has a desire from his heart to be completely
Happy, free from all bondages and distresses. This is the desire for God-Realization.

Tuesday, January 27, 2009

CONSTANT REMEMBRANCE OF GOD(SRI RADHARAMAN JI)

Generally people forget GOD while working.There are two reasons for it.The important
reason is one's negligence.The second reason is lack of attachment to GOD. If there is
attachment for anyone , he is reminded spontaneously. Just as your family members your
son, wife, lovers etc...are always remided by you because you have attachment to them.
Therefore we should be determinded that we have to do only God's work, not
our own domestic work.'What is the utility of applying collyrium to the eye, if its enables
a man to go blind?' Similarly what is the utility of such a work which enables us to forget
God?
The rest of all is bhagawat kripa......
sarvey bhabantu sukhinah sarvey santu niramaya..........CHANDRASAGAR.