Wednesday, March 11, 2009

"होली का राष्ट्रीय चिंतन "

भक्ति के रंग में सराबोर होकर भक्ति के बाधक तत्वों को जलाकर नष्ट कर देना ही
होलिका दहन है.
संकट में अथवा किसी भी प्रतिकूल स्थिति में प्रहलाद से "श्री कृष्णः शरणम
ममः " का पाठ और दृढ हो जाता है
एक बार श्रद्धा व विश्वास का आश्रय लेकर यदि नारायण की शरणागति
मिल जाये तो क्रोध व मोह रूपी होलिका हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती .
परमात्मा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए शास्त्रानुकूल आचरण
अति आवश्यक है.
प्रातः ब्रम्ह्मूहुर्त में उठना ,सूर्य को अर्घ्य देना , माता -पिता का
चरण स्पर्श करना , संध्या वन्धन करना ये सब हमें प्रभु के निकट
ले जाकर अति आनंद की अनुभूति कराता है.
आनंद प्राप्त करना ही मानव जीवन का परम लक्ष्य है .
आनंदहीन व्यक्ति का जीवन नीरस होता है और वह संपन्न होकर भी
दरिद्र कहलाता है .
शास्त्रानुकूल आचरण करने वाले का लक्ष्मी सदैव आदर करती है.
प्रह्लाद को लक्ष्मी ने स्वयं अपने हाथों से भोजन कराया .
जब हिरण्य कशिपू ने प्रहलाद को बंदी बनाया दिया था .
अब आप ही बताइए जब आप पर लक्ष्मी की कृपा होगी तो आप
संपन्न होंगे और जब आप संपन्न होंगे तो समाज संपन्न होगा
और जब समाज संपन्न होगा तो क्या देश संपन्न नहीं होगा . ?