तुलसी शालिग्राम विवाह महिमा :पं चंद्रसागर संपूर्ण विश्वों में जिस देवी की कोई तुलना नहीं है, अतः तुलसी नाम से विख्यात विष्णुप्रिया अपनी अनंत महिमा के लिए शाश्त्रों में पूजित हैं कार्तिक पूर्णिमा तिथि को तुलसी का मंगलमय प्राकट्य हुआ था, इसी दिन भगवान श्री हरि ने उनकी पूजा सम्पन्न की थी श्रीमद देवी भागवत के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करता है , वह दस हज़ार गायों के दान का फल निश्चित रूप से प्राप्त करता है (देवी भा ९-२५-३६) तुलसी के प्रादुर्भाव का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है राजा धर्मध्वज की पत्नी माधवी के गर्भ से एक अतुलनीय अनुपम सौंदर्य वाली कन्या का जन्म हुआ जिसे विद्वान लोग तुलसी के नाम से पुकारते हैं तुलसी ने बदरीवन में दिव्या एक लाख वर्ष तक तप किया और ब्रह्मा जी से निवेदन किया, हे तात ! में पूर्व जन्म में गोलोक में श्री कृष्ण की सहचरी तुलसी नाम की गोपी थी एक दिन रासमंडल में रास की अधिष्ठात्री देवी श्री राधा ने मुझे श्री कृष्ण के साथ विहार करते हुए देखकर शाप दे दिया -" तुम मनुष्य योनी प्राप्त करो " तब गोविन्द ने मुझसे कहा - भारत वर्ष में जन्म लेकर तपस्या करके तुम ब्रम्हा जी के वरदान से मेरे अंश स्वरुप चतुर्भुज विष्णु को पतिरूप में प्राप्त करोगी अतः आप मुझे श्री हरि को पति रूप में प्राप्त करने का वर दीजिये ब्रह्माजी ने कहा -देवी उसी गोलोक में एक सुदामा नाम का गोप था जो तुम पर आसक्त था तुम्हारे प्रति कामासक्त भावना के कारन राधा के शाप से वह सुदामा गोप इस समय समुद्र में शंखचूड नामक दैत्य के रूप में विख्यात है हे देवी ! अब इस जन्म में तुम उसी सुदामा गोप की पत्नी बनोगी और बाद में शान्तस्वरूप भगवान नारायण का वरण करोगी दैव योग से उन्ही भगवन नारायण की शाप से तुम अपनी कला से विश्व को पवित्र करने वाली पावन वृक्ष रूप में प्रतिष्ठित होयोगी तुम्हारे विना की गयी सभी देवतायों की पूजा व्यर्थ समझी जायेगी वृन्दाबन में तुम "वृन्दावनी " नाम से विख्यात रहोगी तदन्तर दानव शंखचूड ने गान्धर्व -विवाह के अनुसार उस तुलसी को पत्नी रूप में ग्रहण कर लिया शंखचूड के आतंक से भयभीत देवगन भगवान विष्णु के पास गए भगवान विष्णु ने कहा - " जिस समय उसकी पत्नी का सतित्व नष्ट होगा , उसी समय उसकी मृत्यु होगी भगवान शंकर स्वयं मेरे त्रिशूल से उसका वध करेंगे " तदन्तर देवताओं का कार्य सिद्ध्य करने में सदा तत्पर रहने वाले भगवान श्री हरी वैष्णवी माया के द्वारा शंखचूड का रूप धारण कर उसकी पत्नी का पातिव्रत धर्म नष्ट करके शंखचूड को मारने की इच्छा से तुलसी के घर चले गए हास – परिहास करते हुए जब तुलसी के साथ रमण करने लगे तो तुलसी ने अपने मन में विचार करके सब कुछ जान लिया और कहा - तुमने छल पूर्वक मेरा सतीत्व नष्ट किया , अतः मै तुम्हे शाप देती हूँ - आपने छल पूर्वक मेरा धर्म नष्ट करके मेरे स्वामी को मार डाला आप पाषाण -ह्रदय वाले हैं तथा दयाहीन हो गए हैं अतः हे देव ! आप इसी समय पृथ्वी लोक में पाषाण रूप हो जाएँ इस पर श्री हरि ने कहा - हे देवी ! तुमने भी मुझे पति रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तप किया है , अतः इस शरीर का त्याग करके दिव्य देह धारण करके मेरे साथ मेरे ह्रदय में लक्ष्मी में रूप में स्थापित हो जाओ तुम्हारा यह शरीर गण्डकी नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा तुमारा केश समूह पुण्य वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित होगा तुम्हारे केश से उत्पन्न वह वृक्ष " तुलसी " के नाम से प्रसिद्ध होगा ( देवी भाग ९-२४-३२) मै भी तुम्हारे शाप से पाषाण बनकर भारत वर्ष में गण्डकी नदी के तट के समीप निवास करूँगा वहां रहने वाले करोंडों कीट अपने तीक्ष्ण दान्तरुपी श्रेष्ठ आयुधों से काट - काटकर उस शिला के गड्ढे में मेरे चक्र का चिह्न बनायेंगे जिसमे एक द्वार का चिह्न होगा, चार चक्र होंगे और जो वनमाला से विभूषित होगा तुलसी वह नविन के मेघ के समान वर्ण वाला पाषण "लक्ष्मी- नारायण " नाम से प्रसिद्द होगा जो फल दस हज़ार गायों का दान करने से होता है , वही फल कार्तिक मास में तुलसी के पत्र के दान से प्राप्त हो जाता है (देवी भाग ९-२४-४१) जो मनुष्य तुलसी -काष्ठ से निर्मित माला को धारण करता है, पद-पद पर अश्वमेध यज्ञ का फल निश्चय ही प्राप्त करता है(देवी भाग९-२४-४५) तुलसी धारण करने से सम्बंधित कुछ विधि -निषेध का पालन भी अत्यावश्यक है शास्त्रानुसार -पूर्णिमा, अमावश्या , द्वादशी , सूर्य संक्रांति, रात्रि दोनों संध्याएँ , अशौच ,तथा अपवित्र समयों में, रात के कपड़े पहने हुए तथा शरीर में तेल लगाकर जो लोग तुलसी के पत्र तोड़ते हैं , वे साक्षात् श्री हरि का मस्तक ही काटते हैं (देवी भाग ९-२४-५०)\ शालग्राम शिला का एक नाम "दामोदर" भी है जो पाषाण गोलाकार तथा दो चक्रों से सुशोभित हैं उसे "दामोदर" स्वरुप जानना चाहिए (देवी भाग ९-२४-६३) इसलिए कार्तिक मास में दामोदर परिक्रमा का विशेष माहात्म्य है कार्तिक मास में परिक्रमा करते हुए जो दामोदर भगवान को तुलसी पत्र अर्पण करता है , वह समस्त तीर्थों का फल प्राप्त कर लेता है चरों वेदों के पढने तथा तपस्या करने से जो पुण्य प्राप्त होता है , वह पुण्य शालग्राम के दामोदर स्वरुप पूजन से प्राप्त हो जाता है तुलसी के आठ पवित्र नामों का स्मरण करने से समस्त पाप क्षीण हो जाते हैं ये नाम इस प्रकार है - वृंदा, वृन्दबानी, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा , नंदनी , तुलसी तथा कृष्णजीवनी तुलसी -शालग्राम विवाह उत्सव मानाने से स्त्रियों को कभी वैधव्य का सामना नहीं करना पड़ता , यह जीवन के समस्त अमंगलों को समाप्त करके अभीष्ट की प्राप्ति करा देता है और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करके हरि की शरणागति प्रदान करा देता है तुलसी जी की अनंत महिमा का वर्णन कौन कर सकता है तुलसी के औषधीय गुणों का वर्णन तो आयुर्वेद में विस्तार से किया गया है सर्दी हो ,जुकाम हो अथवा खांसी हो , तुलसी का रस अमृत -तुल्य होता है लगभग २० वर्ष पहले भोपाल में गैस रिसाव काण्ड हुआ था जिसमे हजारों लोग मारे गए थे एक अमेरिकी रिसर्च टीम ने शोध में पाया - जिन घरों के आँगन में तुलसी का कुंडा था, उन घरों में किसी की मृत्यु नहीं हुयी थी तुलसी से उत्सर्जित ऑक्सिजन में तो छूत के रोगाणु व कीटाणु तत्काल नष्ट हो जाते हैं और संपूर्ण वातावरण पवित्रमय हो जाता है चंद्रसागर , २९-०८-०९ |
Monday, August 31, 2009
तुलसी शालिग्राम विवाह महिमा :पं चंद्रसागर
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