Wednesday, January 28, 2009

राम-मन्दिर का राष्ट्रीय चिंतन

प्रातः जब मै गंगाजी का दर्शन करने जाता हूँ तो लोग मुझे "राम- राम" करते हैं. जब कोई अन्तिम यात्रा मै जाता है तो उसके पीछे सब लोग 'राम- नाम सत्य है" कहते हुए चलते हैं./ सबसे आश्चर्य की बात है - भारत का सबसे कम साक्षरता दर रखने वाला प्रदेश बिहार के अति साधनहीन ग्राम् एकवारी (जिला भोजपुर)का निरक्षर किसान भी रामचरित मानस की चौपाइओं से अवगत है / वही राम अपने मन्दिर के लिए अपने ही घर अयोध्या मे मजबूर है क्यों ?क्या त्याग व अहिंषा से राम-मन्दिर का निर्माण सम्भव नही? श्री राम का संपूर्ण जीबन केवल त्याग व अहिंसा पर आधारित है / एक राज्य का त्याग किया, बदले में दो मिला, उन दोनों को भी सुग्रीव और बिभीषण में बाँट दिया / उसी त्याग पुरूष मर्यादा पुरुषोत्तम का मन्दिर त्याग व अहिंसा से सम्भव क्यों नही ? यह अकाट्य सत्य है- इस देश को आजाद कराने के लिए हिंदू व मुसलमान दोनों ने ही बराबर योगदान दिया/ आज भी लोग मिल बांटकर होली-दिवाली और ईद-रमजान साथ मनाते हैं /जब दिलों से एक हैं तो दोनों पक्षों द्वारा त्याग व प्रेम का प्रदर्शन क्यों नही होता?यदि एक मंच पर भारत के सभी धर्माचार्य व मौलवी एकत्रित हों और एक -दुसरे से त्याग का आग्रह करे तो इस रास्ट्रीय समस्या का समाधान हो सकता है.मन्दिर यदि पूजन का स्थान है तो मस्जिद भी इबादत का स्थान है/या तो मन्दिर बने अथवा मस्जिद./यदि राम-जन्म भूमि करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र है तो समस्त मुस्लिम भाइयों को अपने हाथों से त्याग का प्रदर्शन करते हुए मन्दिर बनवाकर देना चाहिए /वहीं दूसरी ओर समस्त हिंदू मिलकर मुस्लिम भाइयों का जो भी आस्था का केन्द्र है वहाँ मन्दिर से भी बड़ा मस्जिद बनवाकर त्याग का परिचय देना चाहिए/अल्लाह व राम दोनों ही घट-घट वासी हैं /मुझे तो मस्जिद में भी राम का दर्शन हो जाता है / तो फ़िर भेदभाव क्यों? हरिद्वार मे हिंदू कांवड़ चडाते हैं किंतु कांवड़ बनाते हैं मुस्लिम भाई /क्या आपसी प्रेम और सौहार्द का परिचय देकर भारत वर्ष को हिंषा -मुक्त राष्ट्र नही बना सकते? हिंसा समस्या है , किंतु समाधान नही/सत्य परेशान है , किंतु पराजित नही/शेष फ़िर कभी .चंद्रसागर.

3 comments:

  1. भैयाजी भगवान् श्री राम को भी बाली वध और रावन वध करना पड़ा था और समस्त लंका के राक्षसों का नाश किया था ये कोई हिंसा नही थी ये तो वीरता थी उन्होंने भी त्याग किया था पर अयोध्या को पापियों को तो दान नही कर दी थी न ही राक्षसों को इसलिए साधारण हितों के लिए तो गाँधी अहिंसा का सहारा लिया जा सकता है पर राष्ट्रीय हित एवं धर्म रक्षा और सनातन समुदाय की रक्षा के लिए तो वीरता का सहारा लेना पड़ेगा और पापियों का नाश करना ही पड़ेगा तब ही राम राज्य की स्थापना सम्भव है ।

    माना की अहिंसा परम धर्म है । पर अहिंसा की परिभाषा क्या है ?

    क्या किसी भी प्रकार से अस्त्र सस्त्र का प्रयोंग न करना ही अहिंसा है ?

    क्या किसी भी मानव या जीव को किसी भी प्रकार से प्रताडित न करना ही अहिंसा है?

    या फ़िर कायर बनकर मार खाना और बिना शत्रु का को कठोर दंड दिए बिना ही चुपचाप अत्याचार सहना ही अहिंसा है ?

    मेरे हिसाब से तो अहिंसा की परिभाषा है की किसी भी प्रकार का अत्याचार सहन न करना और न किसी को करने देना , किसी भी जीव को अकारण न सताना और न किसी को सताने देना और किसी भी अत्याचारी आतताई पापी और जो अकारण किसी जीव मानव या जंतु किसी को भी परेसान करे , अत्याचार करे पापाचार करे उन पापियों का समूल नाश करना उन्हें उनके पाप की असी सजा देना की फ़िर कभी कोई पाप करने से पहले ही काप जाय और इस प्रकार से धर्म और कानून की स्थापना करना ही वास्तविक अहिंसा होगी ।

    उक्त तो मेरे मतानुसार अहिंसा होना चाहिए पर शायद नकली सेकुलर लोगो और लगभग सभी स्वघोषित ज्ञानियो को तो उक्त परिभाषा कटे की तरह चुभ सकती है

    इसलिय महोदय पहले आप अहिसा का अर्थ स्पष्ट कर दे ताकि हम जेसे भी तो समझ सके की आपके तर्क अनुसार अहिंसा है ।

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  2. भैयाजी भगवान् श्री राम को भी बाली वध और रावन वध करना पड़ा था और समस्त लंका के राक्षसों का नाश किया था ये कोई हिंसा नही थी ये तो वीरता थी उन्होंने भी त्याग किया था पर अयोध्या को पापियों को तो दान नही कर दी थी न ही राक्षसों को इसलिए साधारण हितों के लिए तो गाँधी अहिंसा का सहारा लिया जा सकता है पर राष्ट्रीय हित एवं धर्म रक्षा और सनातन समुदाय की रक्षा के लिए तो वीरता का सहारा लेना पड़ेगा और पापियों का नाश करना ही पड़ेगा तब ही राम राज्य की स्थापना सम्भव है ।

    माना की अहिंसा परम धर्म है । पर अहिंसा की परिभाषा क्या है ?

    क्या किसी भी प्रकार से अस्त्र सस्त्र का प्रयोंग न करना ही अहिंसा है ?

    क्या किसी भी मानव या जीव को किसी भी प्रकार से प्रताडित न करना ही अहिंसा है?

    या फ़िर कायर बनकर मार खाना और बिना शत्रु का को कठोर दंड दिए बिना ही चुपचाप अत्याचार सहना ही अहिंसा है ?

    मेरे हिसाब से तो अहिंसा की परिभाषा है की किसी भी प्रकार का अत्याचार सहन न करना और न किसी को करने देना , किसी भी जीव को अकारण न सताना और न किसी को सताने देना और किसी भी अत्याचारी आतताई पापी और जो अकारण किसी जीव मानव या जंतु किसी को भी परेसान करे , अत्याचार करे पापाचार करे उन पापियों का समूल नाश करना उन्हें उनके पाप की असी सजा देना की फ़िर कभी कोई पाप करने से पहले ही काप जाय और इस प्रकार से धर्म और कानून की स्थापना करना ही वास्तविक अहिंसा होगी ।

    उक्त तो मेरे मतानुसार अहिंसा होना चाहिए पर शायद नकली सेकुलर लोगो और लगभग सभी स्वघोषित ज्ञानियो को तो उक्त परिभाषा कटे की तरह चुभ सकती है



    इसलिय महोदय पहले आप अहिसा का अर्थ स्पष्ट कर दे ताकि हम जेसे भी तो समझ सके की आपके तर्क अनुसार अहिंसा है क्या?

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  3. प्रभुजी मै आपसे सहमत नहीं हूँ \ आपने रावण और बाली का उदाहरण दिया , दोनों का युद्ध अधर्म के
    विरूद्व था \ इहाँ मामला अधर्म नहीं अपितु धर्मं के सापेक्ष है \ बाबर ने जब हमारा मंदिर तोडा था
    तब देश में राज तंत्र था , लेकिन अब लोक तंत्र है \ और हाँ श्री राम के समय और बाली के समय भी
    राज तंत्र था , लोक तंत्र नहीं \ आप यदि भारत में कुछ जबरदस्ती करते हैं तो उधर बांग्लादेश
    में कितने हिन्दू मारे जाते हैं उसका आपको पता नहीं \ क्या अपने ही भाइयों को मरवाना अहिंसा है?
    ऐसी अहिंसा आपको मुबारक हो \ मै इसे मर्दानगी नहीं मानता \ रावण ने सीता का हरण किया था \
    आज भी कोई हमारी बहु बेटियों की तरफ बुरी नज़र से देखे तो सभी उसे दंड देते हैं , चाहे बह हिन्दू
    हो या मुसलमान, इससे कोई फरक नहीं पड़ता \ चंद्रसागर

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