Sunday, April 4, 2010

सन्तत्व विचार: स्वामी अखंडानंद सरस्वती

सन्तत्व विचार: स्वामी अखंडानंद सरस्वती
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१) अवधूत कोटि के संत इश्वर की सारी कृति में हाँ ! हाँ ! हाँ ! ! करते जाते हैं /
२) जो मठ -आश्रम को लेकर , धन- सम्पदा को लेकर , विद्या- बुद्धि को लेकर, चेलों- सेवकों को
लेकर अपने में बड़प्पन का प्रदर्शन करता है, क्या वह संत भी है ? सीताराम कहो !
उसके संतत्त्व पर संशय होता है / उसका संतत्त्व तो औपाधिक है /
३) सच्चे संत का किसी स्थान के प्रति , वस्तु -व्यकि के प्रति , कभी अहंता -ममता
नहीं होती / सच्चे संत की दृष्टि में सब परमात्मा है और परमात्मा में सब है /
४) संत कौन है? जो सन्मात्र से - चिन्मात्र से -आनंदमात्र से - ब्रम्हामात्र से एक होकर
अपने जीवन को अत्यंत आनंद में व्यतीत करता है, उसका नाम संत होता है /

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